The Problem Is The Timing": सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण
The Problem Is The Timing": सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision, SIR) के समय को चुना है, उसपर सवाल उठाया है, साथ ही यह भी कहा गया है कि नागरिकता संबंधी मंजूरी गृह मंत्रालय (MHA) का क्षेत्र है, न कि चुनाव आयोग (EC) का।
न्यायाधीश सुधांशु धूलिया ने चुनाव आयोग से कहा:
“Your exercise is not the problem… it is the timing” — यानी कार्य पद्धति ठीक है, लेकिन समय गलत है, क्योंकि इससे प्रभावित व्यक्ति अपनी मताधिकार छूट जाने पर अपील करने का पर्याप्त समय नहीं पा पाएंगे
ABP Live के मुताबिक: सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि यह SIR इतनी देर से क्यों शुरू की गई, चुनाव से महीनों पहले किया जाना चाहिए था
दस्तावेज़ों की मांग और समय सीमा:
अदालत ने नोट किया कि SIR में नागरिकता सम्बन्धी प्रमाण के लिए चुनाव आयोग ने आधार व वोटर आईडी को पर्याप्त नहीं माना, जिससे गरीब, प्रवासी या दस्तावेज़हीन मतदाता वंचित होने की आशंका है ।
प्रवासी मजदूरों के पास स्थानीय प्रमाणीकरण नहीं होता, जिससे वे “प्रणोदित रूप से” बहिष्कृत हो सकते हैं, जैसा RJD सांसद मनोज झा का तर्क था
नागरिकता का मुद्दा — MHA का क्षेत्र:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नागरिकता संबंधी निर्णय गृह मंत्रालय का काम है, और चुनाव आयोग को सिर्फ मतदाता सूची जांच का कार्य करना चाहिए — इसकी अधिकार सीमा का उल्लंघन संक्रमणीय बना हुआ है
चुनाव आयोग का बचाव:
EC ने यह तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 326 के अंतर्गत, 1 जुलाई 2025 तक 18 वर्ष हो चुके प्रत्येक व्यक्ति को सूची में शामिल किया जाना है। 2003 के बाद पहला ऐसा विशिष्ट पुनरीक्षण हो रहा है, जिसका वैधानिक अधिकार चुनाव आयोग को प्राप्त है ।
निष्कर्ष:
न्यायालय ने SIR की वैधता पर आपत्ति नहीं उठाई, बल्कि समय और प्रक्रिया की निष्पक्षता पर केंद्रित सवाल किए — खासकर प्रभावित वर्गों के मताधिकार अधिकारों के प्रति।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी पक्ष को स्पष्ट निर्देश दिए कि चुनाव आयोग तथ्यों और समय-सारिणी की व्याख्या करे, साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि किसी भी वास्तविक मतदाता के अधिकारों का उल्लंघन न हो।
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